अध्यात्म के क्षेत्र में तप का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है. जैन वा्मय में मोक्ष के साधनों में तपस्या को भी स्थान दिया गया है. मोक्ष के दो साधन हैं- संवर और निर्जरा. संवर कर्म के आगमन का निरोध करता है और निर्जरा पूर्वार्जित पाप कर्मो को खपाने का काम करती है. तपस्या शारीरिक भी होती है, वाचिक भी होती है और मानसिक भी होती है. जितना तपस्या का क्रम आगे बढ़ेगा, उतना साधना में निखार आयेगा.<br />तपस्या के साथ एक विशेष बात यह होनी चाहिए कि सकाम तपस्या हो अर्थात् मोक्ष की कामना से तपस्या हो, अन्य किसी कामना से न हो. निर्जरा के सिवाय अन्य किसी उद्देश्य से तपस्या नहीं करनी चाहिए. यदि तपस्या के साथ निदान कर लिया जाता है<br /><br />For More Information visit our Website www.healthyyoga.in<br />Whatsapp Number - 9930370689<br />Twitter - https://twitter.com/ParasmalDugad<br />Instagram - https://www.instagram.com/parasdugad/<br />Facebook - https://www.facebook.com/prekshadhyan...<br /><br />#Parasmal_dugad #Paras_Mudra #@Advance Yoga by Parasmal Dugad
